Connect with us

November 22, 2024 3:38 PM

India

CHILD TRAFFICKING MENACE SHOULD BE DEALT WITH SEVERELY AND MOST EXPEDITIOUSLY

Published

on

FB IMG 1526105710518
Read Time: 4 minutes

The child trafficking menace is adopting a gigantic proportion nationally with law enforcing agencies particularly the police not being able to adequately n meticulously cope with the situation for reasons being tremendous shortage of personels in police force and their over involvement in duties of the VIPs, VVIPs and resolution of crimes of different more serious nature like murders, decoities, rapes, gangsterism, against corruption and several other hiccups like round the clock petrolling and other factors as well.

Moreover adequate lack of training in the concerned field in terms of meticulous investigation and lack of dedication on the part of some policemen is also one of the important reason why crime against children, child trafficking and cases of their mysterious disappearence are not resolved satisfactorily. The general perception about police in our society in the resolution of crime and cases pertaining to mobile and gold thefts, crime against women, and women assaults is not good nor satisfactory as people feel more relaxed keeping themselves at bay from the police authorities than to seek they support unless it is very very necessary or highly warranting.

This phenomena is undobtedly disturbing though there are very upright, dedcated and outstanding officers in police services who leave no stone unturned to efficiently and honestly prove their mettle. But despite all this, in the recent years, the cases of child trafficking has been on the terrific rise with extremely little rates of recovery or punishment to the criminals or child traffickers involved in this flourishing business right under the nose of the system. According to a conservative estimate and the figures presented in parliament during debates on this pivotal issue about 3 lakh 25 thousand children had been either kidnapped, illegally trafficked or mysteriously disappeared during three years duration from 2011 to june 2014.

This statistics clearly illustrates that about 1 lakh children are disappearing every year and thrown into begging, forcible prostitution and other child labour jobs by gangs involved in this fishy obnoxious trade and our system is hardly capable or worried to set right the situation. According to the statistics of the National Crime record Bureau, in every eight minute, one child gets disappeared in the country thus showing an extremely disturbing trend in terms of child trafficking or missing child incidents. What is more disturbing is the fact that out of these missing children, 55 percent are girls, majority of whom are forcibly pushed into prostitution or arbitrarily sold for good amount even to childless parents in various states or abroad or first sexually assaulted and then left to beggingunder extremely tortuous circumstances with even their body parts brutally cut .

The recovery rate is unfortunately less than twenty percent. One would be surprised and shocked to learn that Maharashtra tops the list in terms of missing children in the last three years with 50 thousand children mysteriously missing followed by Madhya Pradesh showing the figure as 24,836. Delhi is third in the chart with 20000 missing children followed by Andhra Pradesh with 18540 children missing. In Uttar Pradesh too the statistics is highly worrying with hundreds of thousands of children missing every year. The supreme court of India has been extremely serious and harsh on this issue and had issued several important guidelines to the union and state governments to expedite cases of child recoveries and punish the guilty under the strictest sections of the law but of no awail.

If we go by the national statistics on over all basis this figure must have gone in several millions by now, with majority of the cases of child trafficking and disappearence not being reported under duress, pressure and social stigma. The government should seriously come forth with more stringent laws on this front and exedite the police machinery by equipping it with the latest survillence gadgets, filling vacancies, giving adequate hi tech investigation training to its personels, allowing registering of the zero FIRs and opening Fast Track Child Rescue Cells in extremely good numbers at the decentralised police station levels, specifically. What’s your take friends?
SUNIL NEGI, PRESIDENT, UTTARAKHAND JOURNALISTS FORUM

Sunil Negi hails from Uttarakhand and is a veteran journalist and author. He is a prolific writer and has carved a name for himself in the media world. He received the 'Golden Achiever Award' in the '90th AIAC Excellence Awards 2019' for his book ''Havoc in Heaven'' based on the tragedy that struck Uttarakhand in which thousands of people lost their lives. He is also the President of Uttarakhand Journalists Forum and majorly writes on Politics, Current Affairs, and Social Issues.

2 Comments

2 Comments

  1. [email protected]

    May 12, 2018 at 4:04 PM

    (“सर्च माई चाइल्ड ” के बैनर तले बुद्धिजीवियों ,पत्रकारों ,समाज सेवियों ,राजनीतिज्ञों और चिंतकों द्वारा मण्डी हाउस मेट्रो स्टेशन नई दिल्ली से पार्लियामेंट स्ट्रीट तक गुमशुदा बच्चों के पक्ष में मार्च व ज्ञापन सौंपने पर eGairsain पब्लिक ग्रुप की समीक्षा )
    मित्रो ,
    जिन घरों के बच्चे लापता हुए ,अगवा हुए अथवा चोरी हो गए उन बच्चों के परिवार वालों ,व उनके माता पिता का मानसिक पीड़ा से जो हाल होता है, या गुमशुदा बच्चे को किस प्रकार गायब करने वाले रखते हैं, आदि बातों को अब गंभीरता से लेना अत्यधिक अनिवार्य हो गया है। देश और दुनिया में ऐसे गिरोह सक्रिय हैं जिनका काम ही इस प्रकार के काम करके समाज को दुःख देना है। जिस प्रकार भारत या एशिया के देश चाइल्ड ट्रैफ़िकिंग को हलके में ले रहे हैं, हो सकता है ऐसी घटना किसी बड़े आदमी के साथ हो जाय, तो उसकी ऐसी स्थिति में क्या दशा हो सकती है ,देश के जनप्रतिनिधियों को यह सोचना ही पड़ेगा और इसको गंभीरता से लेना ही होगा। जिस प्रकार देश में बच्चे तेजी से गायब हो रहे हैं यह एक सोचनीय सवाल है।
    कहा जाता है कि बच्चे देश का भविष्य होते हैं। संसद में पेश आंकड़ों के मुताबिक 2011 से 2014 (जून तक) देश में तीन लाख 25 हजार बच्चे गायब हुए। यानी औसतन हर साल करीब एक लाख बच्चे अपने यहां गायब हो रहे हैं। जब भी इतने बड़े पैमाने पर बच्चों के गुम होने के तथ्य सामने आते हैं तो सरकारी तंत्र रटे-रटाए औपचारिक स्पष्टीकरणों और समस्या के समाधान के लिए नए उपाय करने की बातों से आगे कुछ नहीं कर पाता। इसीलिए सुप्रीम कोर्ट ने गत 17 अप्रैल को केंद्र सरकार को कड़ी फटकार लगाते हुए कहा कि देश में बड़े पैमाने पर बच्चे गुम हो रहे हैं और सरकार के सचिव सिर्फ पत्र लिखने में लगे हुए हैं: सरकार इस मसले पर इतनी बेपरवाह कैसे हो सकती है और यह कैसा सुशासन है?सुप्रीम कोर्ट ने महिला एवं बाल विकास मंत्रालय से बीते इकतीस मार्च तक गुमशुदा बच्चों की बाबत पूरी जानकारी मांगी थी, लेकिन मंत्रालय इस निर्देश पर अमल करने में नाकाम रहा। लिहाजा मामले की सुनवाई कर रहे न्यायाधीशों को कहना पड़ा कि बच्चों की गुमशुदगी को लेकर सरकार का रवैया संवेदनहीन है। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के मुताबिक हमारे यहां हर आठवें मिनट में एक बच्चा गायब हो रहा है। गौरतलब बात यह भी है कि गायब होने वालों मे 55 फीसद लड़कियां होती हैं और लापता बच्चों मे से 45 फीसद कभी नहीं मिलते।पाकिस्तान में हर साल गायब होने वाले बच्चों की संख्या तीन हजार है, जबकि हमसे अधिक आबादी वाले चीन में एक साल में दस हजार बच्चे गायब होते हैं। अपने देश में राज्यवार बात की जाए तो लापता होने वाले बच्चों की संख्या में महाराष्ट्र अव्व्ल नम्बर पर है, जहां पिछले तीन साल में 50 हजार बच्चे गायब हुए। उसके बाद मध्यप्रदेश से 24,836 बच्चे गायब हुए। दिल्ली (19,948) और आंध्रप्रदेश (18,540) का नम्बर क्रमशः तीसरा और चौथा है। लापता बच्चों से संबंधित आंकड़ों की एक हकीकत यह भी है कि एनसीआरबी सिर्फ अपहरण किए गए बच्चों की संख्या बताता है। फिर ज्यादातर मामलों में पुलिस प्राथमिकी दर्ज करने से इनकार कर देती है या टालमटोल करती है। फरवरी 2013 में भी सुप्रीम कोर्ट ने लापता बच्चों की संख्या और उसके प्रति सरकारी बेसब्री के मद्देनजर प्रतिक्रिया जताते हुए कहा था कि यह विडम्बना ही है कि किसी को गायब बच्चों की फिक्र नहीं है। लेकिन इन दो सालों के दौरान दो लाख से अधिक बच्चे गायब हुए हैं और हालात जस के तस बने हुए हैं। जाहिर कि राज्यों की कानून-व्यवस्था की मशीनरी का बच्चों को ढूंढने पर कोई फोकस नहीं है और जिन राज्यों ने अपने यहां ‘लापता व्यक्तियों के ब्यूरो’ बनाए हैं, उन्होंने भी वहां काबिल या जिम्मेदार अफसरों को नियुक्त नहीं किया है। यह स्थिति इसी बात को दर्शाती है कि गुमशुदा बच्चों को ढूंढना किसी की प्राथमिकता में नहीं है। बच्चों के अवैध व्यापार में लिप्त अपराधी गिरोहों ने देश ही नहीं बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपना नेटवर्क कायम कर रखा है, जो बच्चों को यौन व्यापार में धकेलने से लेकर बंधुआ मजदूरी के लिए मजबूर करने तक का काम करता है। बच्चों के अंग भंग कर उनसे भीख मंगवाने के काम में भी इन गिरोहों की संलिप्तता देखी गई है। कई मामलों में अपहृत बच्चों के अंगों को प्रत्यारोपण के लिए निकालने के बाद उन्हें उनके हाल पर मरने के लिए छोड़ दिया जाता है।सुप्रीम कोर्ट के कड़े निर्देश के बावजूद पुलिस ऐसे मामलों में तत्काल रिपोर्ट दर्ज कर कार्रवाई करने में हीला-हवाला करती दिखती है। कई दिनों तक वह गुमशुदा बच्चे के माता-पिता को यह कहकर मामले को टालती रहती है कि कुछ समय बाद बच्चा खुद घर लौट आएगा।
    सवाल यही है कि इस मामले मे सरकारों की उदासीनता का सिलसिला कब टूटेगा और वे आने वाले कल की बुनियाद यानी बच्चों के गायब होने की त्रासदी की रोकथाम के लिए कारगर कदम उठाएंगी? जय भारत।बन्दे मातरम।

    • Sunil Negi

      May 26, 2018 at 7:21 AM

      Thanks Dhaundiyalji

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Bridging Points Media

loading...

Samachar Hub

Ukalodisha

Coupons Universe

Newsletter








































Which is the better movie Seabiscuit or Secretariat?
VoteResults